ऐसी तेज धूप में
इतना कोहरा कौनसा है
निखरते ऑंखोंके सामने
धूँधलापन ये कैसा है
शायद कोई जलन है
जो ना जलती है
ना ही बुझती है
धुँवा बिखरती है
जल जाती तो अच्छा होता
जलकर राँख होती थी
बात खत्म होती थी
नजर खुल जाती थी
ना जलती अच्छाही होता
ऐसी जलती धूप में
कुछ तो ना जलता
कुछ तो ना जलता
Tuesday, May 24, 2011
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