पेट के पीछे भागा जा रहा था, भागा जा रहा था। थककर थोडासा रुक गया, थोडा सास लेने के लिए। तब पता चला की पेट तो बहुत पीछे रह गया है, और में ही भागा जा रहा हूँ, जोर से भागा जा रहा हूँ। कैसी भाग है जो रुकने नही देती? कैसी भाग है ये जिसका कोई अंत नही?
लगता है जैसे भाग ही जीवन है, रुक गया सो मर गया।
लगता है जैसे भाग जीवन ही है, जोर से बहा नही सो सूख गया।
ये भाग नही तो कैसा हो जीवन? जीवन ऐसा हो जो भागता तो नही पर गतिशील हो। जीवन ऐसा हो स्थिर तो हो पर मृत पत्थर ना हो। जो गतिसे डरता नही और गतिके अधीन नही। जो बहने से बह नही जाता और रुकने से सूख नही जाता। जीवन ऐसा हो जो अपने आप में जीवन है, जीवनदायी है। मंझिल अंदरसे उभरती है, फूलती है, जो उसे गाती देती है और स्थिरता भी, एकसाथ। मंझिल और रास्ता एक दूसरे में समाये हुए है। रुकना और चलना एक दूसरे के अंग है
किसी के पीछे भागने की वासना नही, किसी के आगे भागने की ईर्ष्या नही। गती है पर वो शान्ति का रूप है। शांती है गति में रहती है और गतिसेही फैलती है। पूरे तनमें, पूरे मनमें। मनसे फैलती है पूरे जीवनमें
हे मेरे आत्मा मुझे ऐसा जीवन दे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Chaos (calamity ?) Of Govt’s Making and What Now? ————————————————————————— Whether PM delayed the lockdown for politics in MP or not ...

-
१६ - ५ - २०१२ लिहीत असतो मी कविता , कथा , दीर्घकथा शब्द असंख्य बोलत असतो वाचाळ गप्पा , भाषणं , संभाषणं वेळी अवेळी निरर्थक शब्...
-
Chaos (calamity ?) Of Govt’s Making and What Now? ————————————————————————— Whether PM delayed the lockdown for politics in MP or not ...
-
काल मावळलेला सूर्य सकाळी उगवलाय . संध्याकाळी पुन्हा मावळणार आहे नव्याने उगवायला . सूर्यदर्शन घेऊन मी छाती भरून घेतलीय ती ...
No comments:
Post a Comment