उस मनोहारी कुवें में
मैं झाकता हूं
दिल खोलके कुदता हूँ
पुरा खुलके डूबता हूँ
सुंदर जिस्ममें मनोहारी कुवाँ
कैसा होता ये कुवाँ
गर जिस्म सुंदर ना होता
क्या होता ये कुवाँ
गर जिस्म होता ही नही
इक मनोहारी कुवेका सुंदर जिस्म
मैं आँखे फ़ाडके निहारता हूँ
इस मनोहारी कुवेका जिस्म
अगर बदसूरत होता
तो क्या मैं इतना झाँकता-डुबता ?!
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